कश्मीर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गेम ओवर! अब तक 11 अलगाववादी संगठनों ने घुटने टेके
तीन दशक बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है। कट्टरपंथी गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से जुड़े अलगाववादी संगठन बारी-बारी उससे रिश्ता तोड़ रहे हैं। भारत के लिए आग उलगने वाले हुर्रियत नेताओं ने राजनीति से दूरी बना रखी है।


Sanjay Purohit
Created AT: 09 अप्रैल 2025
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जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद का समर्थन करने वाले कट्टरपंथी गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गेम ओवर हो चुका है। हुर्रियत से जुड़े अलगाववादी संगठन एक के बाद इससे नाता तोड़ रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बीच जम्मू कश्मीर इस्लामिक पॉलिटिकल पार्टी, जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम डेमोक्रेटिक लीग और कश्मीर फ्रीडम फ्रंट ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से रिश्ता तोड़ने का ऐलान किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट कर बताया कि पीएम नरेन्द्र मोदी का एकजुट और शक्तिशाली भारत का दृष्टिकोण आज और भी मजबूत हो गया है, क्योंकि अब तक 11 ऐसे संगठन हुर्रियत छोड़कर भारत के संविधान में आस्था जाहिर कर चुके हैं।
कागजों में सिमटे अलगाववादी संगठन, जहर उगलना भी बंद
हकीम अब्दुल राशिद की मुस्लिम डेमोक्रेटिक लीग सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्ववाले कट्टरपंथी हुर्रियत गुट का हिस्सा थी। 2019 में अब्दुल राशिद को गिलानी ने हुर्रियत का प्रवक्ता बनाया था। इसके अलावा युसूफ नाकश के नेतृत्व वाली इस्लामिक पॉलिटिकल पार्टी और बशीर अहमद अंद्राबी की कश्मीर फ्रीडम फ्रंट भी अलगाववाद का समर्थन करता था। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त होने के बाद केंद्र सरकार ने इन अलगाववादी समूह के नेताओं पर कार्रवाई की।
अलगाववादी नेता और हुर्रियत के कार्यकारी सदस्य रहे पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के बिलाल लोन और जे-के मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के प्रोफेसर अब्दुल गनी भट ने राजनीति से दूरी बना ली। उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया या नजरबंद नहीं किया गया। एक्सपर्ट का मानना है कि हुर्रियत से संगठनों का अलग होना सरकार के दबाव का नतीजा है। हालांकि सरकार का मानना है कि कश्मीर में बदलती राजनीतिक स्थिति के कारण लोग अलगाववाद से मुंह मोड़ रहे हैं।
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